“णाणेण बिना न हुंति चरणगुणा”– अर्थात् ज्ञान के बिना चरित्र-संयम नहीं होता। जैन आगम उतराध्ययन के इस श्लोक द्वारा ज्ञान को परिभाषित किया गया है। श्री आत्मवल्लभ जैन के द्वितीय आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा. ने ज्ञान की ज्योति को जन-जन में प्रकाशित करने हेतु भागीरथी प्रयास किये थे। आपने सम्पूर्ण पंजाब एवं गुजरात के अनेक स्थानों पर ज्ञान मंदिर स्वरूप विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की स्थापना करके ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित किया। आचार्य प्रवर द्वारा महिला शिक्षा के लिये विशेष प्रयत्न किये गये। श्री आत्मवल्लभ जैन परम्परा के वाहक वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा. के आशीर्वाद व तपस्वी श्री पूर्णप्रज्ञा जी म.सा. की सद्प्रेरणा से स्थापित श्री आत्मवल्लभ जैन कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय विगत 20 वर्षों से छात्राओं को शिक्षित कर रहा है। इस महाविद्यालय में वर्तमान में 2400 छात्राएं विभिन्न संकायों में शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं। महिला शिक्षा को समर्पित इस महाविद्यालय में छात्राएं बिना किसी जाति धर्म एवं धार्मिक
भेदभाव के गरिमामयी एवं शांत वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं। आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्राओं को न्यास की ओर से छात्रवृति प्रदान की जाती हैं।
जैन धर्म के महान ग्रन्थ धर्मकल्पद्गुम में उल्लेखित है कि “सर्वसहत्वं माधुर्यमार्जवं सुस्त्रियां गुणा:“- अर्थात सहिष्णुता, मघुरता और सरलता ये सुस्त्रियों के गुण हैं। श्री आत्मवल्लभ जैन कन्या महाविद्यालय इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए छात्राओं में संस्कार के गुण भर रहा है| महाविद्यालय में सुसंस्कारवान, आडम्बरविहिन, स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर, निडर व चरित्रवान नागरिक बनाने के लिए संस्कारों का रोपण शिक्षा द्वारा छात्राओं में किया जाता है। हमारी कामना है कि हमारे सद्प्रयासों से महाविद्यालय की छात्राएं मानवीय संवेदनाओं से युक्त भारत की एक श्रेष्ठ नारी बने एवं वे मां भारती के चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहें।
गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा. का सबल हस्त हमारे मस्तिष्क पर सदा बना रहे, जिससे हम सब महाविद्यालय को उच्चतम स्तर पर ले जा सकें|