ॐ अर्हम् नम: । ।
॥। श्री मद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदित्र सदगुरूभ्यो नमः ।।
अ्रमण एवं ब्राह्मण संस्कृति में महीयसी महिलाओं की गौरव गाथाओं का सर्वत्र-उत्कर्षाधायक वर्णन प्राप्त है। ‘महिला-शिक्षा की नवल चेतनाओं को आशुनिक युगीन परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर क्रियान्विति के सफल सन्देश देने के लिए बद्धपरिकर ” श्री आत्मवल्लभ जैन पब्लिक स्कूल” होलकर वाटिका के सामने, श्रीगंगानगर राजस्थान नामक अद्वितीय संस्थान प्रगति के प्ररेणास्पद आयाम का विस्तार कर जन-जन में जागृति का शंखनाद फूंक रहा है
इस सस्थान ने अपने प्राथमिक आगाज से ही स्थानीय, राज्यस्तरीय एवं राष्ट्रस्तरीय गुणवता के गौरीशिखर पर महान स्थान बनाया है । उत्कृष्ट शिक्षा, सुजनशीलता एवं सांस्कृतिक संस्कारों की सुहावनी अमन्द सुगन्ध से संवलित होकर यह संस्थान निरन्तर प्रगति पथ सुदृढ़ रूप से अग्रसर रहे-ऐसी सदभावना है।
आत्म-वल्लभ गुरू भगवन्त के अनेक उपदेश महिला शिक्षा एवं सशक्तीकरण को रेखांकित करते है। वे अपने प्रवचनों में शिक्षा के विषय में फरमाते थे-
न विद्यते यद्यपि पूर्वभारती
गुणानुबन्धिप्रतिभानमद्भुतम्।
श्रुतेन यललेन च वागुपासिता,
श्रुवं करोत्येव कमप्यनुग्रहम। ।
अर्थात् यदि पूर्व पुण्योपार्जित गुणणणोपेत कौशल या प्रतिभा न हो तो भी
निरन्तर उत्तम श्रवण तथा सतत प्रत्यन करने से वाबूदेवी सरस्वती कि कृपा
होती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
महिला को पुरूष से कम आंकना ठीक नहीं है। महीयसी महिलाएं सदैव समाज
का आदर्श नही हैं। नर की अपेक्षा नारी शक्ति को उत्कृष्ट बताते हुए राष्ट्रकवि
मैथिलीशरण गुप्त ने कुछ इस प्रकार कहा है-
“एक नहीं दो दो मालाएं
नर से भारी नारी”
श्री आत्मवललभ जैन पब्लिक स्कूल, श्रीगंगानगर का न्यास पूर्णतया इस पुनीत
सेवाकार्य में अनवरत अग्रणी भूमिका निभाता रहे, इस मंगल मनीषा के साथ ..
नमो जीनानार्म